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आकांक्षा और मांगने को बाकी है
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!!आकांक्षा और मांगने को बाकी है!!
एक बड़ी प्राचीन, तिब्बत में कहानी है।
एक आदमी यात्रा से लौटा है–लंबी यात्रा से।
अपने मित्र के घर ठहरा और उसने मित्र से कहा रात,
यात्रा की चर्चा करते हुए, कि एक बहुत अनूठी चीज मेरे हाथ लग गई है।
और मैंने सोचा था कि जब मैं लौटूंगा तो अपने मित्र को दे दूंगा,
लेकिन अब मैं डरता हूं, तुम्हें दूं या न दूं।
डरता हूं इसलिए कि जो भी मैंने उसके परिणाम देखे वे बड़े खतरनाक हैं।
मुझे एक ऐसा ताबीज मिल गया है कि तुम उससे तीन आकांक्षायें मांग लो, वे पूरी हो जाती हैं।
और मैंने तीन खुद भी मांग कर देख लीं।
वे पूरी हो गई हैं और अब मैं पछताता हूं कि मैंने क्यों मांगीं?
मेरे और मित्रों ने भी मांग कर देख लिए हैं, सब छाती पीट रहे हैं, सिर ठोक रहे हैं।
सोचा था तुम्हें दूंगा, लेकिन अब मैं डरता हूं, दूं या न दूं।
मित्र तो दीवाना हो गया।
उसने कहा, ‘तुम यह क्या कहते हो; न दूं?
कहां है ताबीज? अब हम ज्यादा देर रुक नहीं सकते।
क्योंकि कल का क्या भरोसा?’
पत्नी तो बिलकुल पीछे पड़ गई उसके कि निकालो ताबीज।
उसने कहा कि ‘भई, मुझे सोच लेने दो।
क्योंकि जो परिणाम, सब बुरे हुए।’ उसके मित्र ने कहा, ‘तुमने मांगा ढंग से न होगा।
गलत मांग लिया होगा।’
हर आदमी यही सोचता है कि दूसरा गलत मांग रहा है, इसलिए मुश्किल में पड़ा।
मैं बिलकुल ठीक मांग लूंगा।
लेकिन कोई भी नहीं जानता कि जब तक तुम ठीक नहीं हो, तुम ठीक मांगोगे कैसे?
मांग तो तुमसे पैदा होगी।
नहीं माना मित्र, नहीं मानी पत्नी।
उन्होंने बहुत आग्रह किया तो ताबीज देकर मित्र उदास चला गया।
सुबह तक ठहरना मुश्किल था। दोनों ने सोचा, क्या मांगें?
बहुत दिन से एक आकांक्षा थी कि घर में कम से कम एक लाख रुपया हो।
तो पहला लखपति हो जाने की आकांक्षा थी।
और लखपति तिब्बत में बहुत बड़ी बात है।
तो उन्होंने कहा, वह पहली आकांक्षा तो पूरी कर ही लें, फिर सोचेंगे।
तो पहली आकांक्षा मांगी कि लाख रुपया।
जैसे ही कोई आकांक्षा मांगोगे, ताबीज हाथ से गिरता था झटक कर।
उसका मतलब था कि मांग स्वीकार हो गई।
बस, पंद्रह मिनट बाद दरवाजे पर दस्तक पड़ी।
खबर आई कि लड़का जो राजा की सेना में था, वह मारा गया और राजा ने लाख रुपये का पुरस्कार दिया।
पत्नी तो छाती पीट कर रोने लगी कि यह क्या हुआ?
उसने कहा कि दूसरी आकांक्षा इसी वक्त मांगो कि मेरा लड़का जिंदा किया जाए।
बाप थोड़ा डरा। उसने कहा कि यह अभी जो पहली का फल हुआ
…पर पत्नी एकदम पीछे पड़ी थी कि देर मत करो
कहीं वे दफना न दें, कहीं लाश सड़-गल न जाए, जल्दी मांगो।
तो दूसरी आकांक्षा मांगी कि लड़का हमारा वापिस लौटा दिया जाए। ताबीज गिरा।
पंद्रह मिनट बाद दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।
लड़के के पैर की आहट थी। उसने जोर से कहा, ‘पिताजी।’
आवाज भी सुनाई पड़ी, पर दोनों बहुत डर गये। इतने जल्दी लड़का आ गया?
बाप ने बाहर झांक कर देखा, वहां कोई दिखाई नहीं पड़ता।
खिड़की में से देखा, वहां कोई दिखाई नहीं पड़ता, कोई चलता-फिरता मालूम होता है।
वह लड़का प्रेत होकर वापिस आ गया।
क्योंकि शरीर तो दफना दिया जा चुका था। पत्नी और पति दोनों घबड़ा रहे हैं, कि अब क्या करें?
दरवाजा खोलें कि नहीं?
क्योंकि तुमने भला कितना ही लड़के को प्रेम किया हो,
अगर वह प्रेत होकर आ जाए तो हिम्मत पस्त हो जायेगी।
बाप ने कहा, ‘रुक अभी एक आकांक्षा और मांगने को बाकी है।’
और उसने ताबीज से कहा, ‘कृपा कर और इस लड़के से छुटकारा।
नहीं तो अब यह सतायेगा जिंदगी भर।
यह प्रेत अगर यहां रह गया घर में…इससे छुटकारा करवा दे।’
और पति आधी रात गया ताबीज देने अपने मित्र को वापिस।
और कहा कि, ‘इसे तुम कहीं फेंक ही दो।
अब किसी को भूल कर मत देना।’
तुम्हारी पूरी जिंदगी की कथा इस ताबीज की कथा में छिपी है।
जो तुम मांगते हो वह मिल जाता है। नहीं मिलता है तो तुम परेशान होते हो।
मिल जाता है, फिर तुम परेशान होते हो। गरीब दुखी दिखता है, अमीर और भी दुखी दिखता है।
जिसकी शादी नहीं हुई वह परेशान है, जिसकी शादी हो गई है वह छाती पीट रहा है, सिर ठोंक रहा है।
जिसको बच्चे नहीं हैं वह घूम रहा है साधु-संतों के सत्संग में, कि कहीं बच्चा मिल जाए।
और जिनको बच्चे हैं, वे कहते हैं, कैसे इनसे छुटकारा होगा। यह क्या उपद्रव हो गया।
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तुम्हारे पास कुछ है तो तुम रो रहे हो;
तुम्हारे पास कुछ नहीं है तो तुम रो रहे हो
और मौलिक कारण यह है कि तुम गलत हो ।
इसलिए तुम जो भी चाहते हो,
वह गलत ही चाहते हो।
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