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जब आप अपनी जिन्दगी में विरोध करना छोड़ देते हैं
विरोध करने का मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है वो काम ना करना जो हमें पता है कि हमें कर लेना चाहिए, पर हम आलस की वजह से या फिर किसी और वजह से उसे नहीं करते। एक्ज़ाम्पल के लिए, हम सभी को पता है कि हमें सुबह उठ जाना चाहिए, लेकिन जैसे ही अलार्म बजता है, हम उठने का विरोध करने लगते हैं और स्नूज़ बटन दबा कर फिर से सो जाते हैं।
इसके अलावा लेखक के पास बहुत से लोग यह पूछने के लिए आते हैं कि किस तरह से वे अपनी किताब को प्रिंट करवा सकते, लेकिन इन में से बहुत से लोग कभी अपनी किताब पूरी लिखते ही नहीं हैं। वे सिर्फ सलाह लेते हैं, अपनी किताब को आधा लिखते हैं और फिर जब उनके पास आइडियाज़ खत्म होने लगते हैं, तो वे आलस के मारे उसे नहीं लिखते।
इस तरह के विरोध से लड़ने के लिए आप उस वजह को एक नाम दे दीजिए जिसकी वजह से आप वो काम करने में हिचकिचा रहे हैं। अगर आप आलस की वजह से उस काम को नहीं कर रहे हैं, तो कहिए कि आलस की वजह से आप उस काम को नहीं कर रहे हैं। इसके बाद दूसरा तरीका है प्रार्थना करना।
लेखक अपना काफी समय सफर पर बिताते हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं। शोर में रहने से एक व्यक्ति का मूड आसानी से खराब हो सकता है। लेकिन जब वे प्रार्थना करते हैं, तो उन्हें इस बात का एहसास होता है कि उनका मकसद क्या है।
वे खुद से यह चार सवाल पूछते हैं मैं कौन हूँ? मेरी जिन्दगी का मकसद क्या है? कौन सा काम सबसे जरूरी है? कौन सा काम सबसे कम मायने रखता है?
इस तरह के सवाल उन्हें जिन्दगी का रास्ता दिखाते हैं और यह बताते हैं कि उन्हें किस काम पर अपना ध्यान देना चाहिए। इनसे वे खुद को आध्यात्म से जोड़ पाते हैं।
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