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अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे।” (कहानी)
“पिता जी आप सारा दिन बिस्तर पर ही बैठे रहते हो। यहीं खाते पीते हो और सारा सारा दिन ‘टी वी’ देखते हो इसीलिए आप की हड्डियों ने जबाव दे दिया है थोड़ा चला फिरा करो घूमा करो गली में।” राजेश अपने पिता कोसमझा रहा था या झुंझला रहा था पिता दीनानाथ जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
अस्सी के आसपास आयु होने को आई दिल के मरीज भी हैं।दीनानाथ जी ने किसी डॉक्टर को दिखाने की इच्छा भी ज़ाहीर नहीं की राजेश से, वो काम बहु ने संभाल रखा है पर राजेश रोज रोज आते जाते सुना ही देता है।बीस साल पहले हार्टअटैक आया था तभी से दीनानाथ जी कुछ उदास उदास रहते थे। सत्रह साल पहले उनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया था।
अब बेटे बहु के सिवा कोई सहारा नहीं था पुराने विचारों के पक्षपाती दीनानाथ जी बेटी के घर रहने को तैयार ही नहीं थे। जब तक हो सका बहु के बताए कामों में जैसे तैसे हाथ बटाते रहे। पिछले पांच साल से उनकी हिम्मत नहीं होती कुछ भी करने की। राजेश कुछ अधिक पढ़ नहीं पाया था वह रेडीमेड कपड़ों का शोरूम चलता है जो दीनानाथ जी ने अपनी जमापूंजी से ही खुलवाया था।पोता वैभव हैदराबाद में रहता है ।
हाल ही में उसकी नौकरी लगी है। कुछ दिन छुट्टी ले सबसे मिलने आया है। बचपन से ही जानता है कि पिता राजेश सब पर अपनी झुंझलाहट निकालते रहते हैं ।बचपन में दादा जी ने कितनी बार अपने क्रोधी बेटे से हम बच्चों को बचाया था। सारा दिन अपने पिता की कही कड़वी बातें वैभव को कचोटती रहीं उसे अपने पिता पर गुस्सा भी आ रहा था।
दादा जी ने हमेशा अपने घर परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है और पापा उनसे लेते ही रहे हैं। पापा दादा जी को बोझ समझते हैं।शाम को खाना खाने के बाद राजेश अपने कमरे में जा लेट गए।वह रोज़ ही रात को दस बजे सो जाते हैं। वैभव उनके कमरे में पहुंच बोलने लगा, “पापा आप रोज खाना खाते ही सो जाते हो जबकि इससे आपकी सेहत ख़राब होती है ।
थोड़ा टहल आया करो वैसे भी सारा दिन शोरूम की कुर्सी पर बैठे ही तो रहते हो। घूमने नहीं जाते तभी ब्लूडप्रेशर इतना अधिक रहता है और वज़न भी बढ़ता जा रहा है। मम्मी से रोज टांगे दबवाते हो। ऐसे तो दादा जी को आयु तक आप किसी काम के नहीं रहोगे।”भौचके से राजेश अपने बेटे को देखते रह गए पत्नी रेखा को बुलाते हुए बोले, “देखो अपने सपूत को कैसे सीखा रहा है ।
मुझे, बहुत जुबान चलने लगी इसकी।””आप भी तो दादा जी को बताते हो कि कैसे उन्हें सेहत का ध्यान रखना चाहिए। मैनें ज़रा सी सावधानी बरतने को कहा है और आप को बुरा लग गया।’ मुस्कुराते हुए वो अपने कमरे में चला गया। उधर साथ के कमरे में दीनानाथ जी भी मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। धीरे से बोले, “अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे।”
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