कुछ तो दिया (कहानी)

बुद्ध एक दिन एक घर के बाहर भिक्षा मांगने पहुंचे। दरवाजा खटखटाते ही एक औरत ने दरवाजा खोला। लेकिन यह क्या। सुबह-सुबह यह भिक्षु कहां से आ गया? सो बस उसने भला-बुरा कहते हुए दरवाजा वापस बंद कर दिया। एक पड़ोसी दूर से यह तमाशा देख रहा था, वह बुद्ध विरोधी भी था।

सो उसे स्वाभाविक रूप से कुछ ज्यादा ही मजा आया।खैर! अगले दिन बुद्ध ने फिर वही दरवाजा खटखटाया। अबकी तो वह औरत बुद्ध को देखते ही क्रोध में आ गई और उसने बुद्ध पर कचरा फेंक मारा। संयोग से आज भी वह पड़ोसी यह तमाशा देख रहा था, स्वाभाविक रूप से बुद्ध का ऐसा अपमान हुआ देख आज वह ज्यादा ही खुश हुआ।

इतना ही नहीं, आज उससे रहा भी न गया; बस बुद्ध का हाल देख वह खूब जोर से हँसा भी। होगा, तीसरे दिन फिर बुद्ध उसी दरवाजे पर आ खड़े हुए। लेकिन आज वह आदमी बुद्ध को फिर आया देखकर आश्चर्यचकित हो गया। इससे पहले कि बुद्ध दरवाजा खटखटाते, उसने बुद्ध को रोकते हुए कहा- मैं आपका घोर विरोधी हूँ।

सो आपके हो रहे अपमान से मुझे खुशी ही मिल रही थी, लेकिन आज आपके फिर इस द्वार पर आने ने मुझे कुछ आश्चर्य में डाल दिया है। मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ कि जब दो दिनों से यह औरत आपका अपमान कर रही है, तब आज फिर भिक्षा मांगने आप यहां क्यों चले आए?बुद्ध ने हँसते हुए कहा- इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।

तुम आश्चर्यचकित इसलिए हो कि तुम्हें मानवीय मनोविज्ञान का कोई अनुभव नहीं। बाकी किसी का अपमान करना या किसी पर कचरा फेंकना भी “कुछ देना ही” है। हर विकर्षण ‘आकर्षण’ का ही स्वरूप है। यदि कल उसने कचरा दिया है तो एक दिन वह भोजन भी देगी।और, वह आदमी बुद्ध की बात से संतुष्ट तो नहीं था, परंतु फिर भी खूप अवश्य हो गया था। शायद उसने सोचा होगा।

कि दरवाजा खटखटा लेने दो, देख लिया जाएगा। जब वह जलते अंगारे बुद्ध पे फेंकेगी, तब बुद्ध से विवाद कर लिया जाएगा। इधर बुद्ध ने फिर उस औरत का दरवाजा खटखटाया। संयोग से आज फिर दरवाजा उसी औरत ने खोला।और आज फिर बुद्ध को सामने पाकर वह इतनी तो आग बबूला हुई कि वास्तव में उन्हें मारने हेतु झाडू ही ले आई।

उसने झाडू तान भी ली परंतु इसके बावजूद बुद्ध के शांत चेहरे पर फैली मुस्कुराहट ने उसके पूरे अंतर को झकझोर कर रख दिया। वह चाहकर भी बुद्ध पर बार नहीं कर पाई। यह तो ठीक पर बुद्ध के चेहरे पर फैली स्मित मुस्कान से इतना तो आकर्षित हुई कि झाडू फेंक तुरंत अंदर भागी। और बुद्ध को देने हेतु रोटी ले आई। बुद्ध धन्यवाद कह रोटी ग्रहण करते हुए ।

जैसे ही मुड़ने को हुए कि वह औरत बुद्ध के चरणों में गिर पड़ी और क्षमा मांगते हुए रो पड़ी। बुद्ध ने उसे तो समझाकर किसी तरह शांत किया, परंतु उधर तमाशा देख रहा पड़ोसी यह सब देखकर बुद्ध पर आफरीन हो गया। वह भी दौड़ता हुआ बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और उनसे स्वयं को दीक्षित करने का निवेदन करने लगा। बुद्ध ने हँसकर उसे गले लगाते हुए कहा- इतनी बड़ी भिक्षा तो मुझे आजतक किसी घर से नहीं मिली।..

. आज तो भोजन के साथ-साथ एक भिक्षु भी मिल गया।सार:- मन का यह नियम समझ लेना कि झुकाव मनुष्य की सारी बीमारियों की जड़ है। इस कारण मन के लिए नफरत और प्रेम, संसारी और संन्यासी में कोई फर्क नहीं। क्योंकि मन के तल पर नफरत को प्रेम में और संसारी को संन्यासी में अदलते-बदलते देर नहीं लगती। मन के तल पर स्थिरता तो वो ही पा सकता है जो तमाम प्रकार के लेन-देन से ऊपर उठ चुका हो।


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