रिटायरमेंट और गलत फहमी ।फ्यूज बल्ब किसी काम का नही, चाहे कोई भी ब्रांड हो ।
सत्य लघु कथा ।।
जयपुर ( राजस्थान) में बसे जगतपुरा ऑफिसर कालोनी में एक IAS अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में रिटायर हुए थे। ये सुपर टाइम स्केल वाले रिटायर्ड IAS अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था – मैं भोपाल में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं. .. मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था- और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया …आपने कभी “फ्यूज बल्ब” देखे हैं? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी? बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं है कि नहीं! फिर जब उन रिटायर्ड आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया तो बुजुर्ग फिर बोले – रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है। हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता। मैं इस सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे शर्मा साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो श्रीवास्तव जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब – करीब एक जैसे ही हो जाते हैं , चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट या 1000 वाट का हो… कोई रोशनी नहीं तो कोई उपयोगिता नहीं.. उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं… पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं करता… कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाए नहीं भूलते…. वे अपने घर के आगे नेम प्लेट लगाते हैं – रिटायर्ड आइएएस/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज आदि – आदि। अब ये रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक.. कौन.. कौन-सी पोस्ट होती है भाई?माना कि आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने रखती है कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे थे…आपने कितनी जिन्दगी को छुआ… आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी…समाज को क्या दिया, मित्र बन्धुओं के कितने काम आएं कितने लोगों की मदद की..या सिर्फ घमंड मे ही गाल सूजे रहे. .पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए
कि एक दिन सबको फ्यूज होना है…ओर घमंड भी कर लोगे तो क्या उखाड़ लोगे ….मैं तो यह कहने में जरा भी देर नहीं लगाऊंगा की … “भाड़ में जाओ”
यह पोस्ट उन लोगों के लिए आईना है जो पद और सत्ता होते हुए कभी अपनी कलम से समाज का हित नहीं कर सकते… और रिटायरमेंट होने के बाद समाज के लिए बड़ी चिंता होने लगती है… अभी भी वक्त है इस पोस्ट को पढ़िए और चिंतन करिए तथा समाज का जो भी संभव हो हित करिए… और अपने पद रूपी बल्ब से समाज व देश को छोटे छोटे अच्छे कामो से रोशन करिए….वही छोटे छोटे अच्छे काम एक दिन बहुत बड़े बन जाते है . …!
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