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राजा भी बहुत दुखी हो गया। फिर उसे याद आई, इसके पुराने महावत को बुलाओ।
बुद्ध एक गांव में ठहरे थे। उस गांव का बड़ा प्रसिद्ध हाथी था राजा का, वह बूढ़ा हो गया था। सारी राजधानी उस हाथी को प्रेम करती थी। उसमें बड़े गुण थे, बड़ा बुद्धिमान था। और उसकी बड़ी जीवन की यशोगाथाएं थीं। बड़े युद्ध उसने लड़े थे, और बड़े युद्ध उसने जीते थे।
और राजा को उसने अनेक-अनेक कठिनाइयों में युद्ध के मैदान पर बचाया था। राजा पर उसकी बड़ी बड़ी सेवाएं थीं। तो उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी नगर में।
वह एक दिन गया था तालाब पर पानी पीने और कीचड़ में फंस गया–बूढ़ा हो गया था, शिथिल-गात्र, निकल न सके। जितनी चेष्टा करे निकलने की कीचड़ से उतना फंसता जाए। अब हाथी वजनी, घबड़ाकर बैठ गया कीचड़ में।
राज महल खबर पहुंची। उस हाथी का जो बूढ़ा महावत था वह तो कभी का अवकाश-प्राप्त हो गया था। नए महावत भेजे गए, उन्होंने उसे बड़े भाले भोंके, उसे बड़ा सताया, निकालने की कोशिश की लेकिन बूढ़ा तो वैसे ही बूढ़ा था, इनकी चोट और मार पीट में और शिथिल हो गया, मरणासन्न हो गया, और कीचड़ में गिर गया। निकलने का कोई उपाय न दिखाई पड़े।
फिर तो स्वयं राजा गया। उस बूढ़े हाथी के आंखों से आंसू बह रहे हैं। वह बूढ़ा हाथी अपनी दयनीयता पर पीड़ित हो रहा होगा। बड़े युद्धों में लड़ा था, पहाड़ों से जूझ जाता था, आज यह दशा हो गई। इस छोटी सी कीचड़ से नहीं निकल पा रहा है? उसकी आंख से आंसू बह रहे हैं। राजा भी बहुत दुखी हो गया। फिर उसे याद आई, इसके पुराने महावत को बुलाओ।
उस बूढ़े को खोजो कहां है। शायद वह कुछ जानता हो। वह इसके साथ जिंदगी भर रहा है, उसे कुछ राज पता हो। वह बूढ़ा आया। राजधानी इकट्ठी हो गई थी। बुद्ध के शिष्य भी इकट्ठे हो गए वहां। पास ही बुद्ध ठहरे थे। वह महावत आया, हंसा, और उसने कहा कि यह क्या कर रहे हो? उसे मार डालोगे? हटो। और उसने कहा कि बैंड लाओ, युद्ध का नगाड़ा बजाओ।
और किनारे पर रखकर उसने युद्ध का नगाड़ा बजवाया। युद्ध का नगाड़ा बजना था कि हाथी एक छलांग में बाहर आ गया। एक क्षण की देर न लगी। सूरमा था। उस क्षण में भूल गया जब नगाड़ा बजा, कि मैं बूढ़ा हूं; भूल गया कि कमजोर हूं; फिर जवान हो गया। हम उतने ही जवान होते हैं जितनी हमारी हिम्मत होती है। हम उतने ही युवा होते हैं जितनी हमारी हिम्मत होती है।
हिम्मत से आदमी बूढ़ा होता है, युवा होता है। उसके साहस पर चोट लगी। यह तो उसने कभी सहा ही नहीं था। युद्ध के बाजे बज जाएं और वह रुका रह जाएं! वह मर भी गया होता तो शायद निकल आता कीचड़ से। बुद्ध के शिष्यों ने आकर कहा, भगवान एक अपूर्व चमत्कार देखा। बुद्ध ने कहा, अपूर्व कुछ भी नहीं है। तुममें से भी मेरी पुकार सुनकर वे ही निकल पाएंगे, जो सूरमा हैं।
यही तो मैं भी कर रहा हूं नासमझों! तुम कीचड़ में फंसे हो और मैं रणभेरी बजा रहा हूं। तुममें से जो हिम्मतवर हैं, जिनमें थोड़ी सी भी क्षमता है साहस की वे निकल आएंगे; वे चुनौती को स्वीकार कर लेंगे।
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