तभी तो बच्चों को यह नहीं
पता कि गेहूं कहां से आता है। पूछो तो कहते हैं किराना स्टोर से।’ ‘

रेखा कहां की तैयारी है? मोनिका जैसे ही रेखा के घर आई तो लॉबी में टेबल पर बहुत सा खाने-पीने का सामान और साथ ही अटैची और कपड़े देखें तो उसने रेखा से पूछा । ‘बस दो-तीन दिन के लिए गांव जा रहे हैं।’ रेखा ने बताया ।

‘कोई शादी है क्या? या मिट्टी (पूजा) वगैरह निकालने जाना है। मोनिका ने प्रश्न किया।
‘नहीं, नहीं, हम तो छुट्टियां मनाने जा रहे हैं ।इस बार सोमवार की भी छुट्टी है। इसलिए तीन दिन बन गए। रेखा ने थोड़ा विस्तार से बताया। ‘है , गांव में छुट्टियां, वह भी बच्चों के साथ, आजकल कौन जाता है गांव में छुट्टियां मनाने।

मोनिका ने बहुत ही हैरानी से कहा।’ हम जाते हैं, सिर्फ हम नहीं, 3 परिवार और है। चारों जाते हैं । कम से कम साल में एक बार जरूर और अपने दोस्तों को भी मोटिवेट करते हैं कि गांव मे छुटियाँ बिताके आओ। रेखा ने कहा।’ फिर दो-तीन दिन क्या करते हो वहां।

लोग तो घर की शादी में भी टाइम पर गांव में जाते हैं और रात को ही अपने घर उल्टे आ जाते हैं। कहते हैं पॉसिबल नहीं वहां रात को रुकना। बच्चों को तो लेकर ही नहीं जाते। मोनिका कहे जा रही थी। रेखा बीच में ही बोल पड़ी, ‘तभी तो बच्चों को यह नहीं
पता कि गेहूं कहां से आता है। पूछो तो कहते हैं किराना स्टोर से।’ ‘हां ,यह तो तुम ठीक कह रही हो। गांव जाते नहीं, रुकते नहीं , तो पता कहां से होगा।’ मोनिका ने रेखा की हां में हां मिलाई।’ तभी तो बच्चों को लेकर जाते हैं।

ताजमहल दिखाना जितना जरूरी है उससे भी ज्यादा जरूरी गांव दिखाने है । जहां असली भारत बसता है।’ रेखा ने मोनिका से कहा और साथ साथ सामान भी पैक करती रही।’ मेरी बात का जवाब नहीं दिया रेखा तूने की दो-तीन दिन वहां करते क्या हो और कहां रुकते हो ? मोनिका ने फिर पूछा । ‘मेरी जेठानी जो गांव में रहती है।

वह और उसकी तीन सहेलियां अपने अपने घर में एक एक कमरा हमारे लिए तैयार कर देती है। वही चारों मिलकर हम लोगों के लिए खाना बनाती है ।
हम और बच्चे भी उनके साथ मदद करते हैं। हम सब वही गांव का खाना चिवडों की चटनी , लाल मिर्चों की चटनी, सरसों का साग, लस्सी, बथुए का रायता, मक्के और बाजरे की रोटी , गुड , घी , शक्कर बस यही सब खाते हैं।’

रेखा बता रही थी।
मोनिका फिर बोली , ‘ चल तुम लोग तो खा लेते होंगे। पर यह बच्चे कैसे खाते हैं’।
‘यही तो इनको सिखाना है कि पिज़्ज़ा , बर्गर नहीं। हमारा असली खाना तो यही है।’ रेखा ने समझाया।
‘ पर बाकी आदमी और लड़के क्या करते हैं’? मोनिका की जिज्ञासा फिर झलकी।

Last-part
‘वहां आदमी और लड़के का कोई प्रश्न नहीं। सब मिलकर काम करते हैं। यह मैसेज भी हम गांव के पुरुषों को देते हैं कि चाहे खाने का काम या दूसरे काम है सबको सब काम मिलजुल कर करने चाहिए।

कभी ट्यूबेल पर धमाल ,तो कभी मां सती के मंदिर पर पूजा के साथ पिकनिक , रात को नाच गाना और बड़े बुजुर्गों से पुराने किस्से सुनना।
तीन-चार दिन कैसे बीत जाते हैं। पता ही नहीं चलता। रेखा ने मोनिका को बताया।
‘ पर तेरी जेठानी और उसकी सहेलियां तो थक जाती होंगी ।सोचती होंगी ,कब जाएं’। मोनिका ने फिर कहा।

‘ हम लोगों का शहरों में मोनिका ज्यादा बुरा हाल है। कोई बिना फोन करें, टाइम लिए बिना आ गया तो हमें गुस्सा आ जाता है। किसी तरह औखे सौखे उससे बात तो करते हैं पर उसके जाते ही कहते हैं । यहां तो पढ़े लिखे गवार है। बिना फोन किए मुंह उठाकर चले आते हैं। वहां लोग चलते फिरते आ जाते हैं। दुआ सलाम करने।

फिर मोनिका हमारा उद्देश्य तो अपने लोगों की मदद करना है। हमने तो मदद करने का एक यह तरीका निकाला है। साथ में बच्चों को संस्कार और शिक्षा भी मिल जाती है।’ रेखा बोल रही थी।
मोनिका ने फिर टोका,’ मदद ,मदद कैसे’?
‘ हम चार परिवार जाते हैं ।चारों के परिवार में चार चार सदस्य हैं।

बाहर घूमने जाते हैं तो आजकल होटल का कमरा कम से कम तीन चार हजार का होता है एक्स्ट्रा बेड के 400, 500 अलग ऊपर से खाना पीना सो अलग। हम प्रत्येक दिन का प्रत्येक परिवार चार हजार देते हैं। रहना और खाना-पीना मिलाकर’। मोनिका फिर बोली,’ वाह घर को ही होटल बना लिया’।

‘मोनिका होम स्टे का नाम तो सुना होगा। आजकल बहुत पॉपुलर हो रहे हैं। हम में से बहुत सारे लोग उनमें छुट्टियां बिताने जाते हैं। फिर हमारे गांव के घर होम स्टे क्यों नहीं बन सकते। हमारे गांव वालों को भी इनकम हो। तेरे को तो पता है। गांव में सब के पास छोटे-छोटे खेत रह गए। नौकरियां इतनी है नहीं। किसान की हालत बहुत खराब है।

सिर्फ बातें करने से या कभी-कभी सोशल मीडिया पर जय किसान और किसान आंदोलन जिंदाबाद लिख देने से कुछ नहीं होगा। हमें वास्तव में आगे बढ़कर धरती पुत्रों की मदद करनी होगी। उनके आय के साधन बढ़ाने होंगे। किसान खुश तो देश खुशहाल।’ रेखा लगातार अपनी ही रौ में बोल रही थी।

मोनिका बीच में ही बोली , ‘रेखा तुम कह तो बिल्कुल ठीक रही हो। बातों से पेट नहीं भरता। उसके लिए कुछ प्रयास करने पड़ते हैं। लोगों को गांव के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी।
तभी समृद्ध किसान के साथ हम समृद्ध भारत का सपना साकार कर पाएंगे।


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