Gyanbajar BUSINESS MANAGEMENT AND ADMINISTRATION जिस तरह सर्दियाँ आना तय है, उसी तरह ज़िंदगी में भी सर्दी का मौसम आना तय है:

जिस तरह सर्दियाँ आना तय है, उसी तरह ज़िंदगी में भी सर्दी का मौसम आना तय है:

सर्दियाँ लाज़मी हैं। शरद ऋतू के तुरंत बाद सर्दियाँ आती हैं, जैसे वसंत ऋतू के बाद गर्मियां आती हैं। प्रकृति के चक्र के हिसाब से सर्दियाँ रिट्रीट का वक़्त है। ठंड और अंधेरे की आड़ में, पौधे और जानवर अपनी एनर्जी बचाते हैं, आराम करते हैं और रिजेनरेट होते हैं। सिर्फ इंसान हिन् हैं जो सर्दियों की धीमे होने और रीग्रुप होने चक्र को रेसिस्ट करता है।

जिस तरह सर्दियाँ आना तय है, उसी तरह ज़िंदगी में भी सर्दी का मौसम आना तय है: एक ऐसा वक़्त जो रूखा और ठंडा और नाउम्मीदी से भरा होता है। चाहे वह बीमारी की वजह से हो, शोक हो, नौकरी छूटने या दिल टूटने का नतीजा हो, हम में से हर एक इंसान को अपने हिस्से की सर्दियाँ झेलनी होंगी।

इस मौसम को अपनाना सीखने से हम वो स्ट्रैटेजीज़ सीख सकते हैं, जो हमें ज़िंदगी के बुरे वक़्त का सामना करने में मदद कर सकें। जब हम अपने स्ट्रगल्स को नेचुरल वर्ल्ड के रिदम के साथ कनेक्ट करते हैं, तो हम अगले वसंत के आने तक सर्वाइव करने के लिए गहरी और टाइम टेस्टेड स्ट्रैटेजीज़ से जुड़ जाते हैं। इस समरी में आप जानेंगे कि  ज़िंदगी की सर्दियों के लिए खुद को तैयार करना क्यों ज़रूरी है? कैसे कोल्ड वाटर स्विमिंग हमें सर्दियों का आनंद लेने के लिए तैयार करती है और सर्दियों में सर्वाइव करने के बारे में चींटियां और मधुमक्खियां हमें क्या सिखा सकती हैं।

तो चलिए शुरू करते हैं!

अपने 40वें जन्मदिन से एक हफ्ते पहले, लेखिका, कैथरीन मे, फोल्कस्टोन के एक बीच पर दोस्तों के साथ थीं, जब उनके पति ने कहा कि उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही। पहले तो वे दोनों इसे एक छोटी-सी बीमारी मानकर ज़्यादा ध्यान नहीं देना चाहते थे, लेकिन दिन बढ़ने के साथ-साथ उनकी हालत और भी खराब होती गई। शाम तक उन्हें इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करा दिया गया, क्योंकि उन्हें एपेंडिसाइटिस होने की आशंका थी। डॉक्टरों ने सुबह इलाज करने की बात कही, लेकिन रात में ही उनका अपेंडिक्स बर्स्ट हो गया। एक हफ्ते तक उनकी ज़िंदगी अधर में लटकी रही। उनकी रिकवरी भी उतनी ही धीमी और दर्दनाक थी।

लेखिका के लिए, ये उनकी ज़िंदगी में एक मुश्किल और चुनौती से भरे मौसम की शुरुआत थी।

जिस वक़्त उनके पति बीमार पड़े, उस वक़्त मे की ज़िंदगी में पहले से ही उथल-पुथल मची हुई थी। उन्होंने तभी अपनी अकैडमिक जॉब में नोटिस दे दिया था क्योंकि वो नौ-से-पाँच की ज़िंदगी से के बाहर कुछ सार्थक काम पाने की उम्मीद कर रही थीं। अपने पति की बीमारी के कुछ ही वक़्त बाद, उन्हें खुद में सेहत ख़राब होने के लक्षण नज़र आने लगे। महीनों के तेजी से कमज़ोर करने वाले लक्षणों और बहुत सारे टेस्ट्स के बाद पता चला कि उन्हें क्रोहन डिज़ीज़ है, यह एक किस्म का इंफ्लेमेटरी बोवेल डिसऑर्डर होता है। अब वो एक प्रोडक्टिव एम्प्लॉई नहीं थीं, उन्होंने अचानक खुद को बेरोजगार पाया और वो क्रिएटिव वर्क करने में भी असमर्थ थीं, जो वो करना चाहती थीं।

मे का बेटा भी परेशानी में था। वह सिर्फ छह साल का था और स्कूल के अकैडमिक टार्गेट्स को पूरा करने में प्रेशर फील कर रहा था। इतना ही नहीं वो दोस्तों की बुलिंग से भी परेशान था। इसलिए लेखिका ने होमस्कूलिंग शुरू करने का मुश्किल फैसला लिया। बीमारी, उथल-पुथल और पीड़ा ने मे को उनके रूटीन से दूर कर दिया था। तब उन्होंने पहले आराम किया। वे थोड़ा धीमे हुईं। उन्होंने खुद को दुःख महसूस करने का मौका दिया। उन्होंने अपने आसपास की दुनिया पर ज़्यादा ध्यान दिया। यहाँ तक कि उसे जीने के इस नए तरीके में ख़ुशी भी मिलने लगी।

वह हमेशा प्राकृतिक दुनिया और उसकी लय में रुचि रखती थी। और इसलिए, अपने जीवन के एक ऐसे दौर में, जो सर्दी की तरह धुंधला और रूखा महसूस हो रहा था, उन्होंने उस मौसम से सबक लेने के लिए उसकी ओर देखना शुरू कर दिया। उन्होंने नोटिस किया कि इंसानों के नेचर से उलट, पौधे और जानवर सर्दी का विरोध करने की कोशिश नहीं करते हैं। वे जानते हैं कि सर्दी गर्मी से बहुत अलग है। इसलिए वे अडैप्ट या हाइबरनेट करते हैं। वे अपने रिसोर्सेज को इकट्ठा करते हैं, आराम करते हैं, और रीजेनरेट करते हैं। जब मौसम बीत जाता है, तो वे पूरी तरह ट्रांसफॉर्म होकर इमर्ज होते हैं।

उन्होंने सोचना शुरू किया कि शायद इंसानों के लिए भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी पौधों या दूसरे जानवरों के लिए।

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