Life changing thoughts Business knowledge and skills हमें चाहे कितने ही लोगों से कॉम्पिटिशन करना पड़े लेकिन सबसे बड़ा कॉम्पिटीशन खुद के साथ ही होता है।

हमें चाहे कितने ही लोगों से कॉम्पिटिशन करना पड़े लेकिन सबसे बड़ा कॉम्पिटीशन खुद के साथ ही होता है।

  • हमें चाहे कितने ही लोगों से कॉम्पिटिशन करना पड़े लेकिन सबसे बड़ा कॉम्पिटीशन खुद के साथ ही होता है।

    आप चाहे किसी कंपनी के CEO हों, एक स्टूडेंट हों,  सेल्स मैन हों या फिर स्पोर्ट्स में हों आप अपने क्षेत्र में हर रोज सबसे बेहतर परफार्म करना चाहते हैं। जिंदगी भर आप इसी के लिए कोशिश करते हैं कि किस तरह अपनी मैक्सिमम पोटेंशियल इस्तेमाल करके अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दें। फिर भी इस बात के बहुत चांस रहते हैं कि आप उस लेवल तक न परफार्म कर सकें। हममें से बहुत लोग ऊंचा मकाम हासिल नहीं कर पाते क्योंकि हमारा नेगेटिव एटीट्यूड हमें पीछे खींचता है। इसके अलावा कई तरह के सामाजिक दबाव होते हैं जो हमारे पांव की बेड़ियां बन जाते हैं। अक्सर ऐसा भी होता है कि अपना गोल हम अपनी सोच या अपनी काबिलियत के हिसाब से नहीं बल्कि उस उम्मीद को देखते हुए तय कर लेते हैं जो दूसरों ने हमसे लगाई होती है। लेकिन ये एक गलत अप्रोच है। इस किताब को पढ़कर आप अच्छे से समझ सकते हैं कि सही अप्रोच क्या है। और आप जो भी करें उसे चैम्पियन की तरह कैसे करें। इस समरीं को पढ़कर आप जानेंगे कि सफलता का रास्ता आप खुद बनाते हैं, सभी चैंपियंस आशावादी क्यों होते हैं? और दुनिया में ऐसी कोई भी बाधा नहीं है जिसे आप पार नहीं कर सकते।

  • तो चलिए शुरू करते हैं!

  • हम हमेशा चैंपियन बनना चाहते हैं। चाहे हम जो भी करें हमें लगता है हमसे बेस्ट कोई नहीं होना चाहिए। हर कोई एक्सेप्शनल बनने का सपना तो देखता है पर आखिर में ज्यादातर लोग एवरेज पर्सन बनकर क्यों रह जाते हैं? इसकी बड़ी वजह यह है कि हम खुद को अंडरएस्टीमेट कर लेते हैं। यानि हमारे अंदर ज्यादा पोटेंशियल होते हुए भी हम बहुत छोटा टारगेट सेट कर लेते हैं। और हम में से ही कुछ ऐसे लोग हैं जो बहुत ऊंचा लक्ष्य लेकर चलते हैं। उनके पास एक प्रोसेस गोल होता है जिसके लिए वे मेहनत करते हैं। इससे उनका सपना एक दिन हकीकतत में बदल जाता है। प्रोसेस गोल आपको आपकी सही शक्ति का एहसास दिलाता है। आपको किसी तरह का टारगेट या कमिटमेंट सेट करने के लिए मोटीवेट करता है और उसको बनाए रखने के लिए मेहनत भी करवाता है।

  • आप अपना प्रोसेस गोल किस तरह सेट कर सकते हैं? एक सीढ़ी की कल्पना कीजिए। इसके हर स्टेप को एक दिन समझ लीजिए, एक चैलेंज समझ लीजिए और एक पॉसिबल रिजल्ट समझ लीजिए। इस पर चलकर एक दिन आप सबसे ऊपरी पायदान पर यानी आपने लक्ष्य तक पंहुचेंगे। मान लीजिए आप स्पोर्ट्स पर्सन हैं और आपका गोल है आने वाली एक चैंपियनशिप को जीतना। जाहिर है इसके लिए बहुत मेहनत और ट्रेनिंग की जरूरत पड़ेगी। हर रोज अभ्यास भी करना होगा। आप अपना डेली रूटीन प्लान करेंगे। एक अच्छा एक्सपर्ट कोच ढूंढेंगे जो आपको सही तरह से तैयारी करने में मदद करे। डाइट और फिटनेस एक्सपर्ट से सलाह मशवरा करेंगे ताकि आप पूरी तरह से उस चैम्पियनशिप के लिए अपने आपको तैयार कर पाएं और कहीं कोई भी कमी न रह जाए। मान लीजिए आप एक सेल्स पर्सन हैं और आपका टारगेट है कि इस साल डेढ़ लाख डॉलर की कमीशन आपको हर हाल में कमानी है। इसके लिए आप अपने कॉल रिकॉर्ड तय करने के साथ शुरुआत कर सकते हैं। देखिए कि सुबह दस बजे तक आपने इतनी कॉल की, बारह बजे तक इतनी और दो बजे तक आपने इतनी कॉल पूरी कर लीं। आखिर इन्हीं में से तो आपके सक्सेसफुल कन्वर्जन होंगे। इससे आपको अपने एक दिन की क्षमता का अंदाजा लग जाता है। हो सकता है कि कुछ लोगों के लिए ये प्रोसेस गोल बहुत ज्यादा मुश्किल हों। इसलिए जिन लोगों को हार या असफलता से डर लगता है वो अपने लिए छोटे-छोटे टारगेट सेट करते हैं। और इसके विपरीत अगर आप अपने लिए कुछ ऐसा गोल सेट करते हैं जो बाकी लोगों के हिसाब से रियलिस्टिक नहीं है तो आप उन लोगों से कहीं ज्यादा ऊपर जाकर रुकते हैं जिन्होंने अपने लिए आपसे कम टारगेट सेट किए थे। इससे हम ये सीखते हैं कि कभी भी अपने लिए उस लिमिट को तय मत कीजिए जो आप आसानी से पार कर सकते हैं। अगर आपका इरादा पक्का है तो आप कुछ भी पा सकते हैं।

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